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#फ़िक्र..!
#फ़िक्र..!
लिखते बैठता हूं कुछ ना कुछ
तब तुम्हारा खयाल आता हैं,
लिखूं ना लिखूं सोचता हूं और
मेरी कलम रुक सी जाती हैं,
किस्से तो कई ख़तम हो गए
कागज़ के दो हिस्से हो गए हैं,
हम अपने थे अब पराए हो गए
गलत से सारे हिसाब हो गए हैं,
जब लोग सवाल पूछते है तब
हम मायूस सा जवाब दे देते हैं,
ज़िक्र होता है तुम्हारा मैफिल में
हमें हमारी फ़िक्र तब होती हैं..!
- ✍ मृदुंग®
kshanatch@gmail.com
+९१ ७३८७९ २२८४३
तब तुम्हारा खयाल आता हैं,
लिखूं ना लिखूं सोचता हूं और
मेरी कलम रुक सी जाती हैं,
किस्से तो कई ख़तम हो गए
कागज़ के दो हिस्से हो गए हैं,
हम अपने थे अब पराए हो गए
गलत से सारे हिसाब हो गए हैं,
जब लोग सवाल पूछते है तब
हम मायूस सा जवाब दे देते हैं,
ज़िक्र होता है तुम्हारा मैफिल में
हमें हमारी फ़िक्र तब होती हैं..!
- ✍ मृदुंग®
kshanatch@gmail.com
+९१ ७३८७९ २२८४३