♥
♥ क्षण..! ♥
खाज..! :)
कितीतरी युगांनी तुला सांजेसह पाहिले आज आहे,
नभातल्या चंद्रासह तुझ्या मुखचंद्रालाही लाज आहे..!
हो, म्हण, "माझं आपलं काहीतरीच काय?" असतंय;
फितूर चांदण्याला काळ्या नभाचाही माज आहे..!
नक्षत्रांचा डोह - मण्यांचा मोह भाळी हा ताज आहे,
काहीही म्हण तू, वाट्टेल ते, हे एवढंच सरताज आहे..!
--------------------------------------------------राज-------,
-------------------------------------------------नाराज----!
--------------------------------------------------------------,
------------------------------------------------- नाज -----!
--------------------------------------------------बाज------,
---------------------------------------------दगाबाज------!
------------------------ ✍ मृदुंग®
kshanatch@gmail.com
७३८७९ २२८४३
("खाज" असंच ठेवावं वाटलं म्हणून..! वाटलं तर पूर्ण करू शकता हं..!) :-)
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