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सच हैं क्या_
आज हमारे हाथ में खाली कटोरा हैं
जेब में फूटी चवन्नी तक नहीं हैं और
खाली पेट की हलक में कविता हैं
फिर भी हमारे कागज़ को गुरुर हैं
मेरे घर की चौखट बड़ी मशरूफ हैं
चौराहे तक स्याही बिखरी हुई हैं
सुना हैं जलिल होना भी ज़रूरी हैं
तब शोहरत दरवाजे पर दस्तक देती हैं
और हिसाब रखने की फुरसत नहीं मिलती
सच हैं क्या..?
- ✍ मृदुंग®
kshanatch@gmail.com
+९१ ७३८७९ २२८४३
सच हैं क्या_
आज हमारे हाथ में खाली कटोरा हैं
जेब में फूटी चवन्नी तक नहीं हैं और
खाली पेट की हलक में कविता हैं
फिर भी हमारे कागज़ को गुरुर हैं
मेरे घर की चौखट बड़ी मशरूफ हैं
चौराहे तक स्याही बिखरी हुई हैं
सुना हैं जलिल होना भी ज़रूरी हैं
तब शोहरत दरवाजे पर दस्तक देती हैं
और हिसाब रखने की फुरसत नहीं मिलती
सच हैं क्या..?
- ✍ मृदुंग®
kshanatch@gmail.com
+९१ ७३८७९ २२८४३