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Thursday, March 2, 2017

खाज..! :-)


♥ क्षण..! ♥

खाज..! :)

कितीतरी युगांनी तुला सांजेसह पाहिले आज आहे,
नभातल्या चंद्रासह तुझ्या मुखचंद्रालाही लाज आहे..!

हो, म्हण, "माझं आपलं काहीतरीच काय?" असतंय;
फितूर चांदण्याला काळ्या नभाचाही माज आहे..!

नक्षत्रांचा डोह - मण्यांचा मोह भाळी हा ताज आहे,
काहीही म्हण तू, वाट्टेल ते, हे एवढंच सरताज आहे..!

--------------------------------------------------राज-------,
-------------------------------------------------नाराज----!

--------------------------------------------------------------,
------------------------------------------------- नाज -----!

--------------------------------------------------बाज------,
---------------------------------------------दगाबाज------!
------------------------ ✍ मृदुंग®
kshanatch@gmail.com
७३८७९ २२८४३

("खाज" असंच ठेवावं वाटलं म्हणून..! वाटलं तर पूर्ण करू शकता हं..!) :-)

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