दर्द-ए-दिल..!
आऊ जो मैं तेरे दर पर
इबादत कभी तू भी कर
ओढू जो तेरी रात मैं कहीं
मेरा सवेरा कभी तू भी कर
फैलाये अपनी झोली ऐसी
मांगा कभी मुझे तू भी कर
दामन भर दु मैं तेरा ए चांद
सितारे कभी तू दे दिया कर
आसमान कि गलीयों से तू
शरमा कें देख भी लिया कर
सांसे ले राहा हूं मैं अभी भी
शुक्र तो मेरा मान लिया कर
एहसान मत कर दर्द-ए-दिल
तसल्ली उनकी कर दिया कर
खुशनसिब हूं मैं अभी जरासा
बदनसिब कभी केह दिया कर
तकदिर को मेरी रुह तो दे दे
जालिम शायर मुझे बोल कर
मुस्कुराता रहूंगा मैं हमेशा युंही
इन लम्हों में जिंदगी बिता कर
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© मृदुंग
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