खोने लगा हूं शायद खुदको..!
यकीन मुझे भी आता नहीं
शिशा आजकल तुटता नहीं
कौन जाने ये उलझने ऐसी
जिंदगी इसे समझू मैं कैसी
चाहकर भी मौत आती नहीं
कदम आजकल रुकते नहीं
काबू किस बात पर करु मैं
जिकर किस किससे करु मैं
तराशता हूं पथ्थरोंका दिल
जाने वो पल कब आयेंगे खिल
बेतूकी बात समझलो चाहे तो
किसे फर्क पडा बदली राहे तो
सांसे सिसकीयों में तफदील हूंयी
और नजरे हमसे यूं ही फेरी गयी
बुरा लगता होगा पलभर के लिये
बुराई के जलाये थे इसलिये दिये
अफसोस मत करो यारो कभी यूं
समा बनावो अपना हमेशा ही यूं
याद कर उस मुसाफिर को एक दिन
कह देना खुश हूं जिंदगी में तुम बिन..!
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© मृदुंग
शुभ रात्री...! :-)
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